फाइनेंशियल प्लानिंग से बनाएँ नव वित्तीय वर्ष को समृद्ध और खुशहाल
हम यदि नववर्ष की बात करें तो दिवाली हो, न्यू ईयर हो, गुड़ी पड़वा हो या बैसाखी – हम इसे बड़े हर्षोल्लास से मनाते हैं और नए संकल्प लेकर नववर्ष के लिए लोगों को समृद्ध और खुशहाल होने की शुभकामनाएँ देते हैं, परंतु नववर्ष को समृद्ध और खुशहाल बनाने के लिए शुभकामनाएँ ही काफी नहीं हैं वरन इसके लिए हमें सार्थक प्रयास भी करने होंगे।
आज वित्तीय मामलों की बात करें तो हम अधिकांश कार्य बिना किसी प्लानिंग के अंतिम समय पर ही करते आए हैं। हाल ही में हमने अखबारों में भी पढ़ा कि 31 मार्च को टैक्स बचत के लिए निवेश करने वालों की, टैक्स रिटर्न फाइल करने वालों की, टैक्स जमा करने वालों की लंबी कतारें लगी रहीं। बिना प्लानिंग के अंतिम समय पर कार्य करने के परिणाम यह होते हैं कि हमारे कार्य तो हो जाते हैं, परंतु दिन-रात मेहनत करने के बावजूद हमें अपने जीवन के लक्ष्यों को पाने में कठिनाई होती है।
आज आवश्यकता है अपने जीवन को समृद्ध एवं वित्तीय रूप से अधिक खुशहाल बनाने की, तो आइए हम एक नई पहल कर वित्तीय वर्ष में फाइनेंशियल प्लानिंग से अपनी समृद्धि और खुशहाली को निश्चित करें :
कैसे करें फाइनेंशियल प्लानिंग?
1. लक्ष्यों को निर्धारित कर वित्तीय स्वरूप दें : हर व्यक्ति के जीवन में अनपे विभिन्न लक्ष्य होते हैं जैसे बच्चों की पढ़ाई-शादी, कार खरीदना, मकान खरीदना, रिटायरमेंट आदि। हमें इन लक्ष्यों का सही आकलन कर इनकी सूची बनाना एवं यह निर्धारित कर लेना चाहिए कि इन लक्ष्यों के लिए वित्तीय आवश्यकता संभवत: किस वर्ष में होगी। साथ ही हमें महँगाई दर को ध्यान में रखकर भविष्य में लगने वाली राशि का निर्धारण भी कर लेना चाहिए।
2. रिस्क प्रोफाइलिंग: हमें अपनी जोखिम वहन क्षमता अर्थात वित्तीय रूप से रिस्क लेने की क्षमता एवं जोखिम सहनशीलता अर्थात मानसिक रूप से रिस्क लेने की क्षमता का आकलन कर अपनी रिस्क प्रोफाइलिंग कर लेना चाहिए।
3. प्रत्येक लक्ष्य के लिए बचत एवं निवेश योजना बनाएँ: हमें अपनी रिस्क प्रोफाइलिंग के आधार पर असेट अलोकेशन बनाकर निवेश पर अनुमानित रिटर्न की गणना कर प्रत्येक लक्ष्य के लिए बचत एवं निवेश योजना बना लेना चाहिए।
4. बचत बढ़ाएँ :
(अ). अनावश्यक खर्चों पर लगाम लगाएँ: अपने विभिन्न मद में होने वाले खर्चों का हिसाब-किताब रखें एवं समय पर रिव्यू करें कि किस मद में खर्चों में कमी की जा सकती है।
(ब). लोन के भार को कम करें: हमें अपने ऐसे लोन जो हमारी नेटवर्थ को बढ़ाने में सहायक नहीं है, उन्हें तुरंत चुकाने की योजना बना लेना चाहिए। साथ ही हमें इस बात पर भी ध्यान देना चाहिए कि किस प्रकार हम ब्याज के भार को कम कर सकते हैं।
(स). टैक्स प्लानिंग केवल टैक्स बचत तक ही सीमित न रखें: अधिकांश व्यक्ति जल्दबाजी में टैक्स बचत के लिए अंतिम समय में बिना अधिक विचार किए कहीं भी निवेश कर देते हैं, जिसमें टैक्स बचत तो हो जाती है, परंतु भविष्य की आवश्यकताओं की पूर्ति सही ढंग से नहीं हो पाती है। अत: हमें वर्ष के प्रारंभ मंए ही टैक्स प्लानिंग करके उचित साधनों में निवेश प्रारंभ कर देना चाहिए।
जल्दबाजी में टैक्स बचत के लिए अंतिम समय में बिना अधिक विचार किए कहीं भी निवेश कर देते हैं, जिसमें टैक्स बचत तो हो जाती है, परंतु भविष्य की आवश्यकताओं की पूर्ति सही ढंग से नहीं हो पाती है।
5. रिस्क मैनेजमेंट :
(अ). संभावित रिस्क का आकलन करें: हमारा जीवन अनिश्चितताओं से घिरा हुआ है, जिसके कारण भविष्य में हमारे लक्ष्यों को हासिल करने में रुकावटें आ सकती हैं। अत: हमें भविष्य में होने वाली ऐसी सभी संभावित रिस्क का आकलन कर लेना चाहिए।
(ब). पर्याप्त इंश्योरेंस कवर लें: इंश्योरेंस रिस्क को ट्रांसफर करने की प्रक्रिया है, जिसके तहत हम अपनी वित्तीय रिस्क को इंश्योरेंस कंपनी को प्रीमियम चुकाकर ट्रांसफर कर सकते हैं एवं अपने भविष्य को सुरक्षित कर सकते हैं। बात चाहे लाइफ इंश्योरेंस की हो या हेल्थ इंश्योरेंस की, हममें से अधिकांश व्यक्तियों ने ये इंश्योरेंस तो ले रखे हैं, पर इनके कवर पर्याप्त नहीं हैं। इसका मुख्यि कारण है कि हम इंश्योरेंस में भी रिटर्न तलाशते हैं और रिस्क को अंडर एस्टीमेट करते हैं। अत: आवश्यकता यह है कि टर्म प्लान के जरिए पर्याप्त लाइफ इंश्योरेंस एवं बढ़ती हुई मेडिकल कास्ट को ध्यान में रखकर पर्याप्त हेल्थ इंश्योरेंस लें।
(स). इमरजेंसी फंड तैयार करें: हर व्यक्ति के जीवन में अनिश्चित घटनाएँ घटित होती रहती हैं, चाहकर भी हम अपनी फाइनेंशियल प्लानिंग में इनका समावेश नहीं कर पाते हैं। इमरजेंसी फंड अनिश्चित घटनाओं के दौरान उत्पन्न वित्तीय आवश्यकताओं की पूर्ति करने के साथ ही वित्तीय कमी से उत्पन्न होने वाली मानसिक प्रताड़ना से भी हमें बचाता है। हमें 4 से 6 माह के मासिक खर्च, लोन-ईएमआई, इंश्योरेंस पॉलिसी की सालाना प्रीमियम के योग के बराबर इमरजेंसी फंड तैयार कर लेना चाहिए।
6. अपनी वसीयत लिखें: सामान्यत: लोग 60 से 70 वर्ष की आयु के बाद ही वसीयत लिखने की योजना बनाते हैं एवं अधिकांश लोगों की मृत्यु बिना वसीयत लिखे ही हो जाती है, जिससे परिवार को काफी परेशानियों का सामना करना पड़ता है, अत: 18 वर्ष की आयु से अधिक मानसिक रूप से स्वस्थ व्यक्ति, जिनके पास संपत्ति/जीवन बीमा पॉलिसी है, उन्हें अपनी वसीयत आवश्यक रूप से लिखना चाहिए।
7. विशेषज्ञों से ही लें वित्तीय सलाह: आज हमें वित्तीय विशेषज्ञ की आवश्यकता है, जो प्रत्येक वित्तीय निर्णय के प्रभाव को समझकर व्यक्ति विशेष की परिस्थितियों के अनुसार वित्तीय सलाह दे सके। अत: हमें अपनी फाइनेंशियल प्लानिंग के लिए सर्टिफाइड फाइनेंशियल प्लानर की सेवाओं का लाभ लेना चाहिए। सर्टिफाइड फाइनेंशिल प्लानर के लिए ग्राहक का हित सर्वोपरि होता है एवं इन पर आप पूर्ण विश्वास कर अपनी पर्सनल फाइनेंस से जुड़ी समस्याओं पर चर्चा कर उचित वित्तीय समाधान प्राप्त कर सकते हैं और अंत में हमारी यही शुभकामना है कि नव वित्तीय वर्ष में आप अपने सार्थक प्रयासों से अपना जीवन समृद्ध और खुशहाल बना सकें।
अरिहंत के फाइनेंशियल प्लानिंग विशेषज्ञों कि मदद के लिए हमें –
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